क़सक
क़सक
तू किसी और की रातों में चाँद बनकर,
चाँदनी बिखेरे तो क्या ?
मेरे ख़्वाबों में तेरी उतनी ही क़सक है !
तू किसी और के दिल में,
जिया तो क्या ?
मेरे ख़्वाबों में तेरा उतना ही असर है !
तेरी ज़ुल्फ़ों की ख़ुश्बू दूसरों की साँसों में,
महके तो क्या ?
तेरी ख़ुशबू का मेरे जहन में उतना ही असर है !
तेरे मतवारे नयन किसी और को मदहोश,
करें तो क्या ?
तेरी मदहोशी का मुझ पर छाया उतना ही असर है !
तेरी धड़कनें किसी और को,
पुकारें तो क्या ?
मेरा तो दिल धड़कता तेरे ही दम पर है !
लब तेरे किसी और को,
चाहें तो क्या ?
मेरा तो नाम अमर तेरे ही दम पर है !
कुछ ऐसी क़सक तूने मेरे दिल में बसा दी है,
हर साँस में "शकुन" हमने तुझे,
जीने की दुआ दी है !

