प्यासा प्रेम
प्यासा प्रेम
ढूंढती है आँखें तुझे ऐ हमदम
सुकून की तलाश में ऐ शबनम।
आ जाओ पलट कर एक बार
पलकों में छुपा कर इस बार,
रखूँगा सीने से लगा कर
करूँगा हर चाहत का तेरी ,
इबादत जान देकर।
रुसवाई तेरी ख़लिश है जीवन की
अब न कोई भूल करूँगा,
मान भी जाओ है रब की क़सम
मूरत तेरी रोम रोम में बसी है सनम,
कैसे बताऊँ तुझे कि साँसें बची है कम
नज़र भर देख लेता रुखसती के वक्त
तो ख़ुदा क़सम रूह को चैन आ जाता।
पत्थर में भी फूल खिलते देखा है
मरुभूमि में भी प्रेम पनपते पाया है,
काँपती देह को बस एक बार छूने की तलब है
साँझ को कई बार ढलते देखा है,
इस शाम को ज़िद की बैसाखी पर खड़े देखा है
आ जाओ कि अब न वो हसीन शाम होगी
ना रूठने मनाने की कशिश होगी,
बस अंधेरा का डेरा होगा ,सन्नाटा का बसेरा होगा।
वेणी के फूल रख देना मेरे मज़ार पर दिलबर
तसल्ली से सो जाऊँगा,तेरे एहसास को पाकर
बस इतना सा एहसान करना ,आख़िरी बार आकर।

