STORYMIRROR

Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Drama Romance

4  

Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Drama Romance

प्यार विश्वास व बदला

प्यार विश्वास व बदला

2 mins
352

आओ सखियों तुम्हारा दिल बहलाऊं,

अपने प्यार का राज बताऊं।


प्यार


पिछले अक्तूबर का मौसम था, जब हमको उन से थोड़ा प्यार हुआ था।


हम शर्माते, सकुचाते, इठलाते, बल खाते गीत प्यार के गाते ।


सर्दी में प्यार और भी सुहाना होता है,

क्योंकि रातें लम्बी दिन छोटा होता है ।


छत पर बैठ नैनों से कर उनका दीदार, मन में घुमड़ रहा था, सागर सा प्यार 


उन्हीं के आगोश में धूप सुहानी सेंक रहे थे ।


चाय के साथ नमकीन का स्वाद ले गरमा गरम सूप पी रहे थे ।


आंखें कर चार उनसे खुद ही मोह रहे थे ।


होते नवम्बर में इकरार हुआ, सखी हमने भी उन पर दिसम्बर में एतबार किया ।


विश्वासघात


पर जनवरी में इस तरह रूठ कर जाना हमको भी तन मन से तोड़ गया ।


रात में ओवरटाइम का कर बहाना यूरोप चले जाते ।


सखी एक बार वे मुझसे कुछ कहकर तो जाते ।


कभी मिस बदली संग कभी मिस वर्षा संग नाच इठलाते और हमें चिढ़ाते ।


हमें देख आंखें लेते भिंच पलक झपकते बादल की ओट हो जाते हैं ।


आखिर हम भी तो इंसान हैं सखी, अपनी भाव संवेदनाओं से जूझ रहे थे ।


ठंडी में लिहाफ कम्बल का ले मजा सुख की नींद सो रहे थे 


वे इस को अपने ही प्यार में विश्वासघात बता रहे थे ।


और हम उन से अपनी मजबूरी जता रहे थे ।

बदला

हद की इंतहा तो अब हो गई वे ले रहे हैं बदला हमारे रजाई प्रेम का ।


सेंक आग होली से हाथ, बसन्त को गले लगा रहे हैं ।


सुबह से लाली दिखा हमको अप्रैल में ही जला रहे हैं ।


सखी अब हम लिहाफ से दूरी बना सत्तू लस्सी पी रहे हैं ।


और तो और नींबू भैया भी साथ उनका दे रहे हैं ।


बाजार में दाम बढ़ा, अपने दोस्त का बदला हम से गिन-गिन कर ले रहे हैं ।

   

 ये चंद पंक्तियां हमारे प्यारे भुवन भाष्कर सूरज जी के साथ सर्दी के समय के प्यार मनुहार की हैं अब तो वे हमारे रजाई प्रेम को विश्वासघात बता अपनी गरम किरणों से झुलसा बदला ले रहे हैं ।

        



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract