प्यार वाली डाँट... !
प्यार वाली डाँट... !
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उससे बार - बार सुनने को
जी चाहता था,
काफ़ी अच्छा लगता था,
एक आधुनिक सी
सौंदर्यता निखरकर बाहर
आती थी,
ज़ब वो कभी गुस्से में
प्यार वाली डाँट
लगाती थी !
समंदर सी गहरी
उसकी नीली - नीली आँखें,
गुलाबी, गुलाब कि
पंखुड़ियों से नर्म - नर्म होंठ,
घनेरी जुल्फों का साया
लगे साँझ कि बेला,
खिलखिलाती हँसी, लगे जैसे
चांदनी मुस्कराती थी,
तिनका-तिनका मेरे दिल को
जलाती थी,
ज़ब वो कभी गुस्से में
प्यार वाली डाँट
लगाती थी !