प्यार, प्यार ही रहे तो अच्छा
प्यार, प्यार ही रहे तो अच्छा
प्यार, प्यार ही रहे तो अच्छा
अफ़सोस बनने पर
साँस की डोर तोड़ देता।
इंसान गाँठ बाँध-बाँध साँस लेता
इतनी गाँठे बाँध देता
कि लचीलापन चला जाता।
एक जीता-जागता इंसान पाषाण बन जाता।
अब जीवन का कोई भी रस उसे छू नहीं पाता
इसलिए
प्यार प्यार ही रहे तो अच्छा।
प्यार,
अपनी महक महकाता रहे तो अच्छा
अगर मुरझा गया तो
जीवन की खुशबू से वंचित हो जाता।
धीरे-धीरे अपनी
खुशियों की पंखुड़ियाँ गिराता जाता।
और एक दिन धरा के
काले-काले काणों में मसला जाता।
उसका और उसके प्यार का
एक भी अवशेष बच नहीं पाता।
इसलिए
प्यार प्यार ही रहे तो अच्छा।
जब
उस रिक्त-सी धरा की माटी में
एक फूल खिल जाता
जो वैराग्य की महक विस्तृत कर जाता
और शनैः शनैः पूरा भूमंडल वैरागी हो जाता।
फिर मनु प्रीति, प्रेम, प्यार,
स्नेह, अनुराग ढूँढते
पर वो धरा के अभ्यंतर में छिप जाता
इसलिए
प्यार, प्यार ही रहे तो अच्छा।