प्यार की बहार
प्यार की बहार
मैने ऐसा सपना सँजोया
रुप का जलवा सँजोया
जिंदगी की शाम
मंजिलों की राह में
रात मे हूई खलबली
दिन में ज्योति जली
स्वपन कब गुजर गए
रास्ते कब भटक गए
और हम मिले थे कब
दिन के ढलान पर
रोशनी बुझी-बुझी
रात कब ढली-ढली
मुश्किलों की राह में
साथ तुम छोड़ी चली
मद्य की बहार में
दिलजलों के गुब्बार में
जहाँ हम खड़े थे
तुम वहाँ से चल पड़ी
प्यार के तूफान में
तुम मुझे छोड़ चली
मै राह देखता रहा
तुम धोखा देती रही
मै पागल होता रहा
तुम खुशियाँ मनाती रही
मै बर्बाद होता रहा
तुम गैर की बाहों मे चली गई
वक्त के शिखर पर
तुम मुझे छोड़ चली
जिंदगी की शाम में
ज्योति बुझा के चली गई !