प्यार दोस्ती ओर मै
प्यार दोस्ती ओर मै
मेरे धीमे और प्यार से पूछने पर भी,
उसने जवाब तेज़ी और रूखाई से दिया
मैंने पहले पलटवार करना चाहा
फ़िर अपमान का घूँट पिया।
पर यह खत्म होने वाला नहीं है
मौके पर इसमे ज्वाला तेजी से जलेगी
तब मैं जानता हूँ
उसके कितने प्रलोभन चाहे
सन्धि की दाल न गलेगी।
उस घटना के बाद मैं
अपने आप को थोड़ा कोसुंगा और
उसकी मनोदशा समझने की कोशिश
करूँगा,
पर सब कुछ गुजर जाने के बाद भी
मैं माफ़ी नही मागूंगा।
और अपने अभिमान व मर्दानेपन की धारा मैं बहा करूंगा
सहसा वो आया- उसने दूर से ही हाथ हिलाया
स्वचालित रुप से मेरा हाथ भी उपर हो आया
वो मेरे पास भाग के आया और कसके गले मिल गया
सब भड़ास अभी लबों पर थी, पर सब सिल गया।