पुश्तैनी विरासत
पुश्तैनी विरासत
करता है वादे, कसमें खाता है क्या,
रस्मो-रिवाज़ से रिश्ते निभाता है क्या,
नए तौर हैं इस ज़माने के नए दौर में,
खुद को बेवज़ह आज़माता है क्या,
तारीख में दर्ज हुई वफायें मुहब्बत की ,
पुराना अब वो इतिहास दुहराता है क्या,
ज़हनी अंधेरो की कफस में है क़ैद जो,
ताज़ा सोच के चिराग जलाता है क्या,
सुना है ज़ज़्बात भी बिकने लगे बाज़ार में,
बता मेरे एहसास का दाम लगाता है क्या,
फैशन में घटे है लिबास से इंसानी म्यार,
तहज़ीब का अब हिज़ाब पहनाता है क्या,
नई नस्लों को अहद समझाने आया तो,
'दक्ष' वो पुश्तैनी विरासत बताता है क्या।
