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Kalamkaar 51

Abstract

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Kalamkaar 51

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पुरुष

पुरुष

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घर की सारी ज़िम्मेदारी वो उठाता है

जो परिवार के हित में हो वो करता जाता है

खर्चे सारे परिवार के वो उठाता है


अपने लिए चाहें कुछ ना खरीदे परिवारवालो के नखरे भी उठाता है

रो जाये अगर भावनाये वियक्त करते हुए समाज क्यों कमज़ोर उसको बताता है

हो अगर मुश्किल में परिवार तो कैसे भी उस मुश्किल का हल निकल लाता है

परिवार में कभी कोई मुश्किल नहीं आने देता है


चट्टान की तरह अपने परिवार के लिए हमेशा खड़ा रहता है

हो छत अपने परिवारवालो के लिए ये सुन

िश्चित करता जाता है

बेघर अपने परिवारवाले को होने नहीं देता है

बच्चो को अपने हर हालत में उनकी पसंद की चीज़े दिलवाता है


कभी घोड़ कभी हाथी अपनों बच्चो को खिलाने के लिए बन जाता है

भटक जाये अगर राह कभी बच्चे तो उसको गुरु की तरह सही राह दिखता है

हो जाये कितना भी बढ़ा मगर माँ के अंचल में बच्चा वो बन जाता है


गोद में सर रखकर माँ के सो जाता है और

परेशानी अपनी भूल जाता है, छोटा बच्चा बन जाता है

लड़े जो समाज से अपने परिवारवालो के हित के लिए और

रखे ख्याल अपने परिवारवालों का

वो पुरुष कहलाता है।


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