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divya mahindru

Abstract

4.7  

divya mahindru

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मानव आकाश की ओर ,मानवता पाताल की ओर

मानव आकाश की ओर ,मानवता पाताल की ओर

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भौतिकवादिता की दौड़ में मानव ने आकाश तक दौड़ लगाई है !

पर मानवता को भूल गया , वह घबराकर पाताल में समाई है !

 

कब तक बाहरी दुनिया के आकर्षण में उन्मादित होगा ?

आखिर मनु की संतान कभी तो ज्ञान से प्रसादित होगा !

 

क्या पायेगा आदि और अंत वाले आधारहीन सुखों में ? 

पूर्ण भ्रम होंगे प्रमाणित जब परिणत होंगे दुखो में !

 

कभी तो जागृत होकर सत्य का करेगा दिव्य दर्शन ,

कभी तो अपनी अभिन्न आध्यात्मिकता का करेगा प्रदर्शन !

 

कभी तो शारीरिक सुखों से हड़बड़ाकर जागेगा !

 आत्मिक सुख पाने के लिए उन्हें विष्वत त्यागेगा !

 

कभी तो शंख नाद होगा ,ज्ञान का परचम लहराएगा !

मानव अपनी खोई हुई मानवता को ससम्मान ले आयेगा !

 

मानव के साथ मानवता जब हाथ में हाथ डाल चलेगी !

तब सही अर्थो में सभ्य सांचे में ढलेगी ! 


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