मानव आकाश की ओर ,मानवता पाताल की ओर
मानव आकाश की ओर ,मानवता पाताल की ओर
भौतिकवादिता की दौड़ में मानव ने आकाश तक दौड़ लगाई है !
पर मानवता को भूल गया , वह घबराकर पाताल में समाई है !
कब तक बाहरी दुनिया के आकर्षण में उन्मादित होगा ?
आखिर मनु की संतान कभी तो ज्ञान से प्रसादित होगा !
क्या पायेगा आदि और अंत वाले आधारहीन सुखों में ?
पूर्ण भ्रम होंगे प्रमाणित जब परिणत होंगे दुखो में !
कभी तो जागृत होकर सत्य का करेगा दिव्य दर्शन ,
कभी तो अपनी अभिन्न आध्यात्मिकता का करेगा प्रदर्शन !
कभी तो शारीरिक सुखों से हड़बड़ाकर जागेगा !
आत्मिक सुख पाने के लिए उन्हें विष्वत त्यागेगा !
कभी तो शंख नाद होगा ,ज्ञान का परचम लहराएगा !
मानव अपनी खोई हुई मानवता को ससम्मान ले आयेगा !
मानव के साथ मानवता जब हाथ में हाथ डाल चलेगी !
तब सही अर्थो में सभ्य सांचे में ढलेगी !