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Sunita Shukla

Abstract

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Sunita Shukla

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मुश्किलें बेहद बड़ी हैं !

मुश्किलें बेहद बड़ी हैं !

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आज प्रकृति और बेजुबान जानवर भी

इंसानों के खिलाफ हो गए ।

वक्त ने इस कदर करवट बदला कि

इंसान छोटा और मुश्किलें बेहद बड़ी हो गईं।


जिम्मेदार भी तो हम खुद ही हैं

मानवता छोड़कर खुद को भगवान समझ बैठे।

इसका सीधा सा असर हमारी जिंदगी पर आया

निरीह जीवों और पर्यावरण का अंधाधुंध दोहन कर बैठे।।


सुना था कुत्ते इंसानों के वफादार होते हैं

बेजुबान हैं फिर भी सब समझ जाते हैं।

जानवर हैं तो क्या अपना फर्ज पूरी तरह निभाते है

और हम इंसान होकर भी कितने गिरते जाते हैं।।


एक दूसरे की टाँग खींचने

और जड़ें खोदने से बाज नहीं आते हैं।

इसलिये दिल लगाना है तो इन बेजुबानों से लगाइए

जानवर भी बोलते हैं साहब बस

उन्हें सुनने और समझने वाला चाहिए।।


क्योंकि इंसान तो फरेबी है

सिर्फ मतलब को साथ आते है।

इन बेज़ुबानों के हमदर्द बन जाइए

ये बिना अल्फाज़ के दुआयें देते हैं।।


कर जुल्म बेज़ुबानों पर

खुद को महान समझ बैठे हैं।

बराबरी तो खुद से भी नहीं

और खुद को भगवान समझ बैठे हैं।।


तुम भी जीते और हम भी जीते हैं

सब कुछ बराबर समझते हैं।

फर्क बस इतना गुरूर तुमसे छोटा

और दिल तुमसे बहुत बड़ा रखते हैं।।


बर्बरता की हदें करते पार

फायदा ही क्या मनुष्य की आत्मा पाने का।

जो बेजुबानों पर करते जुल्म

क्या फायदा उनका इस दुनिया में आने का।।


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