नव युग के देवदूत !
नव युग के देवदूत !
कुदरत ने कुछ ऐसा कहर है बरपाया
हर रिश्ते नाते और मित्र बंधु को भुलाया
पड़ी मार कोरोना की, कोई पास न आया
हर इंसान को अपनो के स्नेह को तरसाया।।
हर तरफ मचा है हाहाकार
शमशानों में लगा लाशों का अंबार
अस्पतालों में लगती लम्बी कतार
चली मृत्यु की जहरीली कटार। ।
नहीं आशा, चहुं ओर निराशा
आदमी ग़मगीन हैं, चेहरे तेजहीन हैं
लोग टूटे, हुए बेबस और जिंदगियां हार रहे
ऐसे में दो हाथ बढ़े, बढ़ते हाथों से थाम लिये।।
अंतिम कोशिश तक लड़ते हैं, वो देवदूत से दिखते हैं,
दिन-रात लगे वो रहते हैं, आराम नहीं वो करते हैं
हर साँस की कीमत जानते हैं
इसीलिए तो अंतिम क्षण तक प्रयास वो करते हैं।।
यहाँ नहीं कोई उनका अपना
पर जान की बाजी लगाते हैं
अपनी कोई फिकर नहीं
और तुरत मदद को आते हैं।।
ये डॉक्टर और नर्स भी हमारी तरह इंसान हैं
उन्हें भी लगता है डर और वो भी घबराते हैं
लेकिन चेहरे पर कभी एक शिकन नहीं लाते हैं
हर दर्द को सहकर वो अपना फर्ज निभाते हैं।।
अपने परिवार से दूर रह कर
जाने कितने परिवार बचाते हैं।
उन धवल श्वेत से वस्त्रों में वह
ईश्वर की जीवित मूर्ति नजर आते हैं।।