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Akanksha Gupta

Abstract

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Akanksha Gupta

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भटक रहा हूँ

भटक रहा हूँ

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जीवन के लिए भटक रहा हूँ

फिर भी मयस्सर नहीं एक पल

जीने के लिए हवा भी हुई जहर

मजबूरी है ज़िंदगी फिर भी


भटक रहा हूँ आज फिर

जीवन की तलाश में

कुछ अधूरी सी ख़्वाहिश

पूरी करने की चाहत में 


फ़क़त इतनी सी ख्वाहिश

कि बचा लूँ कुछ पल और

जीने के लिए अपनों के वास्ते

और कर लूँ जतन थोड़ा सा


बिक रहा है जीवन पैसों में

गरीब हो गई ज़ीस्त भी यहाँ

अब तो कोई बता दे इस सफर में

हम जाए तो जाए कहाँ।


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