पुरानी पेंशन
पुरानी पेंशन
पुरानी पेंशन बड़ी थी प्यारी,
वानप्रस्थ की जहाँ खुशियाँ सारी,
एक आत्मसम्मान का था भाव,
स्वनिर्भरता संग सद्भाव।
अकेले पथ का पेंशन साथी,
कोई कमी न कभी सताती,
दो जून की रोटी देती,
सुख दुख में साथ देती।
आर्थिक स्वतंत्रता का ये आधार,
वृद्ध नहीं कभी किसी पर भार,
कंपकंपाते हाथों का ये सहारा,
तभी तो वृद्ध न कभी हारा,
मत छीनो अब ये अधिकार,
बुढ़ापे का ये एक ही साथ।।
