पुरानी ऐनक
पुरानी ऐनक
निकल चला था मैं उस घर की ओर,
गुम थी बरसों से जिसकी चमक।
दरवाजा खोला, चारों तरफ धूल,
दूर से घूरती वो बुढ़ापे की सनक।।
आज कुछ वृद्ध सी लग रही थी,
जो कभी थी किसी चेहरे की रौनक।
मुझे देख नम हो गई उसकी कहानी,
जिसकी न कभी लगी मुझे भनक।।
मेरे इन्तजार में कभी रूठी भी थी,
कभी एक आहट में वो गई चहक।
पास जाकर मैंने सहलाया उसको,
तो फैली कमरे में, यादों की वही महक।।
काश दो पल उस भीड़ से निकल आता,
आंसूओं से भर गए मेरे नैन अचानक।
वो आंखों तो अब गहरी नींद सो गई हैं,
अकेली पड़ी हैं बस, धुंधली बेहाल ये ऐनक।।
