पुराना टीवी
पुराना टीवी
याद है वो दिन मुझे अभी भी
जब आया था घर पे हमारे, वो पुराना टीवी
वो पल में बन गया था हमारा दोस्त करीबी
तब न कोई चिंता न कोई फिकर थी
वो बालपन की जो उमर थी
खुशियों का खज़ाना बना था, हमारा वो टीवी
वो दौर ही अलग था
मेरा तुम्हारा तब कब था
पूरे मोहल्ले के लिए एक टीवी ना कम था
वो दूरदर्शन के पट का खुलने वाला संगीत
अब तक याद है मिले सुर मेरा तुम्हारा वाला वो गीत
एक अनेक वाला वो छोटा चलचित्र
वो चित्रहार,और वो बैंगन राजा विचित्र
रामायण और चंद्रकांता के लिए वो हमारा पागलपन
हाय. ...वो बचपन,...वो लड़कपन!!
जो भी आता था टीवी पर,हम रहते थे उसे ही निहारते
सिनेमा एक इंतजार में सप्ताह थे गुजारते
रविवार होता था सबसे खूबसूरत
उस दिन होती थी टीवी की सबसे ज्यादा जरूरत
सबके साथ कहीं भी एडजस्ट हो बैठते थे
सब अपनों में कभी ना अपने अपनों को खोजते थे
किसी के घर भी खा लेते थे,
हर घर को अपना बना लेते थे
तब भले टीवी छोटा हो,दिल सबके बड़े होते थे
हमारी बातचीत का ये गंभीर विषय होता था
इतना बड़ा आदमी उस छोटी सी टीवी में भला कैसे फिट होता है??
टीवी को देखने में विस्मय,कौतूहल,और उल्लास का भाव मिश्रित होता था
श्वेत श्याम ही था सबकुछ टीवी पर
जीवन में तब रंग थे सभी मगर
लोगों के पास एक दूसरे के लिए समय होता था
इंसान एक दूसरे के संग हंसता रोता था
मनोरंजन जीवन का अंग था
पर तब अपनों का सबको संग था
आज मनोरंजन में सब गुम हैं
पर अकेलेपन से सब तंग हैं
पुराने टीवी की बात पर आज भी मन हर्षाता है
वो सुहाना बचपन मन को गुदगुदाता है
दिल आज भी उन बातों को भूल नहीं पाता है
सच वो गुजरा जमाना और हमारा पुराना टीवी बहुत याद आता है।