पुल
पुल
मुझे ये स्याही से रंगे हाथ भी
उतने ही पसंद हैं जितने मेंहदी वाले,
जब ये स्याही से रंग जाते हैं,
तुम तक आने का पुल बनाते हैं,
ये नज़्में, ये ग़जलें ये हम दोनों
के बीच का पुल ही तो है,
हर शब्द ,हर अक्षर, हर ज़ेरे ज़बर,
उस पुल को जैसे सजाते हैं,
हर बहर, रदीफ, काफिया,
पुल को मजबूत बनाते हैं
इस पर चलकर ही हम दोनों
एक दूसरे से मिल पाते हैं।
ये हमेशा हमें जोडे रखता है,
हर शब्द जैसे दर्पण हो गया है,
बस तुम्ही को अर्पण होगया है
खुद को तुम्हारे नगमों में पाती हूँ
अपने गीतों में तुम्हें गुनगुनाती हूँ।
सना...