पत्र जो लिखा
पत्र जो लिखा


क्यूँ तुम मुझे अपने से लगते हो
क्यूँ तुम मुझे सपने जैसे लगते हो ,
क्यूँ खो जाते हो तुम मेंरी बात में
क्यूँ खाली पन्ने के जैसे
सूने-सूने से लगते हो।
इसलिये कि
पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं।
लिख लेते है कभी तेरी याद में
कलम चल जाती है फरियाद में
पत्र जो लिखे तुम्हे अलफाज में
मगर भेजा ही नहीं जज्बात में।
इसलिये कि
पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं।
और फ़िर एक दिन मुलाकत की
आती जाती बारिश रात की,
ना तुम भिगो ना हम
बस खत लिख लेगे तेरी याद में
तुम यहां हम वहां।
इसलिये कि
पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं।