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Prem Bajaj

Romance

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Prem Bajaj

Romance

पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं

पत्र जो लिखा मगर भेजा नहीं

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यादों का मैनें आज सन्दूक है खोला, उसमे से निकला इक पुराना झोला अरे ये क्या है, देखू तो मै इक झलक, ये है एक पुराना खत।

याद आ गया मुझको वो जमाना, जब मैंने ये खत letter box में था डाला, ना जाने फिर क्या था सूझा, हाथ डाल कर उसमे से फिर उस खत को बाहर निकाला।

हाँ पढ़ता था वो मेरे ही college मे लड़का था वो भोलाभाला, ना जाने वो क्यूँ हर पल मुझको ताके वो तिरछी नज़र से, दिल ही दिल में शायद वो भी मुझ पर दिलो-जान से मरता था, मैं भी तो दिवानी थी उसकी।

हिम्मत कर के लिख ही डाला इक ऐसा पत्र प्यारा।

मेरे दिलबर, मेरे जानी, तुझ बिन मेरी अधूरी कहानी

मेरे दोस्त, मेरे हमदम, भरती हूँ मैं हर पल तेरा ही दम।

मेरे राझाँ, मेरे माही, तुझ बिन सूने मेरे दिन और रातें, आन मिलो कभी चाँदनी रात में, तारों की छाँव में करेंगे बातें।

दिन-रैना देखूँ इक ही सपना, कब ले जाओगे मुझे तुम अपने अँगना। जब भी आते हो मेरे सामने, धक से धड़क के रह जाता ये दिल। तुम्हारी नज़दीकियाँ पाने को तड़प रहा है मेरा ये दिलजी चाहता है आज ही कह दूँ, बँधी हूँँ मैं लाज की बेडि़यों में, तुम्हें तो कोई रोक नहीं है, तुम तो कह दो, क्या चाहता है दिल तुम्हारा ?

क्या तुम को मुझसे लगाव नहीं, या यूँ समझूँ कि मैं इस लायक नहीं, फिर क्यों कह देते मुझसे, कि मैं भी चाहता साथ हूँ तेरा।

ना तुमने कुछ कहा, ना मैंने। आज ये पत्र देख कर पुराने ज़ख्म फिर से हरे हो गये। कुछ यादें अभी ताजा़ है, कुछ वक्त की गर्त में खो गये।


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