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Manthan Rastogi

Tragedy

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Manthan Rastogi

Tragedy

पत्र भेज नहीं पाया

पत्र भेज नहीं पाया

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अश्रु अंत जनाज़े पर

मैं सेज नहीं पाया

लिखा तो था मगर

मैं पत्र भेज नहीं पाया


खुद की ज़िद पर था मैं आया

दौलत शोहरत मन मोह माया

दूर पिता से निकल आया

मैं पत्र भेज नहीं पाया


खूब लुटाया खूब कमाया

पैसों से बड़ी ना थी काया

प्रेम कभी ना कर पाया

मैं पत्र भेज नहीं पाया


इतना अव्यस्त ना हो पाया

बीमार पिता को छोड़ आया

कंधा देने तक ना आया

मैं पत्र भेज नहीं पाया


खुद को ही दोषी पाया

बाप का कर्ज़ गया ज़ाया

अग्नि तक ना दे पाया

मैं पत्र भेज नहीं पाया


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