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Ratna Kaul Bhardwaj

Inspirational

4.8  

Ratna Kaul Bhardwaj

Inspirational

पतंगे बोली

पतंगे बोली

2 mins
424


ऊपर रंग बिरंगी उड़ती पतंगे

आकाश में कुछ बोल रही थी

ज़िन्दगी की व्यथाओं के शायद

रहस्य कुछ खोल रही थी


नीली बोली, वह देखो

कैसे नीचे वे पेच लड़ा रहे हैं

समझते हैं हमें उड़ाकर 

वह बड़ा कमाल दिखा रहे हैं


लाल बोली, यह तो मांझा है

जिसने हमें बांध रखा है

कटने से हम भला क्यों डरे

ऊंचा उड़ना जब साध रखा है


बोली हरी, ऊंचाइयां हम छू लेते हैं

इसमें मांझे वाले का है कमाल

मजबूत हो धागा, अटल इरादा

पेच तो लगेगा ही बेमिसाल


पीली बोली, क्यों बहनों

ऐसा नहीं हम कटती नहीं कभी

कटने से बोलो कितनी बार

बची है हम सारी सखी


अब बोली दुरंगी नीली पीली

उड़ते उड़ते कितना हम पछताती है

जब आकाश के साथी उस पंछी के

मांझे से गले व पर हम काट लेती है


सामने से एक आता पक्षी बोला

अरे क्यों करती तुम सारी इसका जिक्र

जब नीचे बैठे इंसान ने ही

करनी छोड़ रखी है हमारी फिक्र


वह नीचे वाले पेच लगाते जाते है

तुम ठुमक ठुमक कर नाचती जाती हो

अरे गर हम घायल होकर गिर जाते हैं

तुम भी तो अपना बसेरा खो देती हो


अगली सुबह इंसान देखकर नज़ारा

पल भर के लिए दिल उसका दुखता है

शायद शर्मिंदा भी हो जाता होगा

पर कुछ दिन में सब वह भूल जाता है


एक साल बाद वही कर्म, वही करणी

इंसान का शौक फिर से उभर आता है

तुम हवा संग लहराती हो, हम कटते हैं

नीचे बैठा काटता, लूटता है, बस यही चक्र चलता है


ज़िन्दगी का चक्रव्यूह है शायद यही

यह क्रम शायद कभी बदलेगा नहीं...



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