पता नहीं
पता नहीं
सारी परछाइयाँ तैर जाती हैं
आंखों के सामने
उद्विग्न मन से सोचता में
जाता हूँ सिहर
आंखों ने क्या कुछ नहीं देखा
अब तक
और बाकी नहीं हिम्मत
देखने को
नीरा बुद्धि भटकता मैं
कहाँ मिलेगा पता नहीं
कौन मिलेगा पता नहीं
कब मिलेगा चैन
कब कटेगी रैन
पता नहीं
हर पल छोड़ जाते लोग
साथ
अब कब तक थामे
कोई हाथ
राहों में कितने रोड़े
कितने हमने राह मोड़े
कब पूरी होंगी ख्वाहिशें
पता नहीं।
