STORYMIRROR

Dr.Pratik Prabhakar

Tragedy Action Inspirational

3  

Dr.Pratik Prabhakar

Tragedy Action Inspirational

पता नहीं

पता नहीं

1 min
164

सारी परछाइयाँ तैर जाती हैं

आंखों के सामने

उद्विग्न मन से सोचता में

जाता हूँ सिहर

आंखों ने क्या कुछ नहीं देखा

अब तक

और बाकी नहीं हिम्मत

देखने को

नीरा बुद्धि भटकता मैं

कहाँ मिलेगा पता नहीं

कौन मिलेगा पता नहीं

कब मिलेगा चैन

कब कटेगी रैन

पता नहीं

हर पल छोड़ जाते लोग

साथ

अब कब तक थामे

कोई हाथ

राहों में कितने रोड़े

कितने हमने राह मोड़े

कब पूरी होंगी ख्वाहिशें

पता नहीं।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy