।। प्रतिकार ।।
।। प्रतिकार ।।
आज कुछ बिखरा सा मन है,
धड़कन ज़रा उदास है,
सब तरफ बस शोर सा है,
उखड़ी हुई सी आस है।
जोश था तूने दिया जो,
क्यों पड़ी सी ओस है,
तेरे नाम के चर्चे बहुत पर,
फिर भी एक अफसोस है।
क्यों भला मुझको भरोसा,
अब टूटता सा, लग रहा,
सरपरस्ती में ए रहबर तेरी,
चमन बिखरता दिख रहा।
जाग उठ संधान कर,
गांडीव पर अब फिर वो शर,
कट गिरें अरि शीश सारे,
रक्त रंजित हो,अरि भूमि हर।
बन तू शिव, दिखला दे तांडव,
शौर्य से प्रतिकार कर,
अरि नाम भूतल से मिटा दे,
एक आखिरी तू प्रहार कर।