प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
अपनी अनन्त यादों...
तुम्हारे असंख्य वादों के
साथ जी रही थी मैं
मन कहता रहा,
तुम आओगे... जरूर आओगे एक दिन!
जाते हुए कहा था तुमने...
मिलते रहेंगे हम आगे भी!
तुम्हारे वादे पर यकीन कर
मैं आने वाले उस कल
की करती रही... प्रतीक्षा!
तुम्हारी औपचारिक बातों को...
समझ लिया था
मैंने तुम्हारा वादा...
कल... जो पल-पल गुजरता रहा,
आया नहीं!
और आज...
कितनी आसानी से कह दिया तुमने...
हो न सकेगा अब मिलना सम्भव!
काँच की तरह बिखर गया
मेरे ख़्वाबों का आशियाना...
बोझिल हो गया खुशी से उत्साहित मन...
धुंधली होने लगी आँसुओं से लबरेज़ आँखें!
जो देखा करती थी
दूर से आते हर राही में अक्श तेरा
खुली आँखों में अधूरे ख़्वाब लिये
फिर से उसी अनन्त प्रतीक्षा में
रहना होगा मुझे...
करूंगी मैं... तुम्हारी!
चिर मौन प्रतीक्षा
