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Ravi Purohit

Drama

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Ravi Purohit

Drama

परती जमीन मुस्करा दे शायद

परती जमीन मुस्करा दे शायद

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आओ सुधारें

झाड़-झंखाड़ों से भर

उबड़-खाबड़ परती जमी

थोड़ा गहरा होगा

पर निकल आएगा


अपने प्रयास के पसीने से

रूहानी जमीन का जल

कर लें छंटाई अहम् की

तो यह बंजर भूमि भी


देने लग शायद

रिश्तों को

नेह-फसल की रोटियां,


हमारी यायावर मानसिक भूख को

मिल जाए अपना मुकाम

और हम जीते-जागते


मुस्कुरा सकें

अपनों के पपड़ाते

होठों परखुले आम

सच में।


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