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Ratna Kaul Bhardwaj

Inspirational Others

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Ratna Kaul Bhardwaj

Inspirational Others

प्रतिबिंब

प्रतिबिंब

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चलो नव भारत की करें बात

उपलब्धियाँ जिसने पाई है अनेक

विश्व में भी हम खूब चर्चित है

पर भीतर खोखला यहाँ हर एक


घुटन से जनता है बेबस आज

चारों तरफ फुंकार ही फुंकार

मुफ़लिस की चादर घट गई है

हर मोड़ पर दे उसकी आत्मा पुकार


आज भी यहाँ बचपन हाथों में

कटोरा लिए फिरता चौराहे पर

नंगे बदन, वीरान आँखें, बेबसी

बिकती है यहां हर दो राहे पर 


स्त्री की सुरक्षा व् प्रतिष्ठा

आज यहाँ प्रश्न चिन्ह है बना

रक्षक ही भक्षक बन बैठे है

अभिशापित स्त्री, छिन्न भिन्न उसका सपना


किसान आज यहाँ धरा पर नहीं

फंदों से लटका हुआ मिलता है

उसका अस्तित्व छीना जा रहा है

तिजोरियों वाला फलता जा रहा है


हर क्षेत्र का विकल्प न जाने क्यों

चंद झोलियों में डाला जा रहा है

छीना जा रहा रोज़ी रोटी का जरिया

साहूकारों को देश सौंपा जा रहा है


दिवालिया खुद को घोषित करके

साहूकार यहाँ भागते है देश से

भविष्य उनका स्विस बैंक में सुरक्षित

सकते में वह, किया था निवेश जिसने


घोटाले हो रहे हैं हर क्षेत्र में

नेताओं का हैं सीधा सम्बन्ध

आम आदमी कहाँ गुहार करे

भ्रष्टाचार की हैं चहों और धुंध


धर्म निरपेक्षता, आंदोलन, बेरोज़गारी, आरक्षण

कुरीतियां अभी भी हैं प्रचलित 

साक्षरता, प्रगति गर पाए हैं हम

क्यों मन लोगों के हैं फिर विचलित


दशकों पहले हुआ पलायन एक कौम का 

ऊपर रिफ्यूजी का टैग उससे मिला

उसकी निष्ठा, प्रतिष्ठा छलनी है

घाव उसके गहरे है, करें कहाँ वह शिकवा


मंदिरों में भोग लगाने वालों की

यूं तो यहाँ कोई कमी नहीं हैं

पर मन मंदिर सबके काले हैं

मानवता का  कोई  मोल नहीं हैं


संस्कार हमारे हो चुके है दूषित

धूमिल हो चुकी हैं संस्कृति हमारी

गर हम उन्नतशील, संस्कारी हैं

क्यों गणना बढ़ रही वृद्ध आश्रमों की


हम अति आधुनिक हो गए हैं

लिव इन रिलेशनशिप अपना चुके हैं

धिक्कारा हैं हमने अपनी संस्कृति को

वेस्टर्न जामा जो हम पहन गए हैं


मेरे देश का आईना कुछ धुंधला गया है

प्रतिबिंब भी जिसका दिखता मटमैला है

कुरीतियों की दीमक जड़ें खा रही हैं

वातावरण में न जाने क्यों विष फैला है


समय की पुकार है आत्म चिंतन का

कुरीतियों का विष पीकर नीलकंठ बनने का

चलो फिर से बीज बोयें नैतिक मूलियों का

मौका हैं यही बलिदानों का ऋण चुकाने का....


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