पृथ्वी अनमोल है ...
पृथ्वी अनमोल है ...
एक दिन स्वप्न में
मानो सूक्ष्म शरीर
जा पहुँचा
उस विस्तृत ब्रह्मांड में
उस रहस्यवादी लोक में
जहाँ सब कुछ अद्भुत।
सब कुछ विचित्र
मानो कल्पनालोक था
या कि छायालोक था
उसकी चमक ऐसी कि
उसको देख न पाते नयन
उसको देखने के लिए बस
देख पाए मन के नयन
आकाशगंगा ढेर सारी
और अद्भुत थे नजारे
कई असंख्य थे वे तारे
लग रहे थे बहुत प्यारे
सूर्य सबसे शक्तिशाली
अग्नि को बरसा रहा था
चाँद भी मद्धम मद्धम
चाँदनी छिटका रहा था
मंगल अपने लाल रंग में
बहुत गजब ढा रहा था
बुद्ध की महिमा निराली
ब्रहस्पति अपने छल्लों से
अपनी खूबसूरती बरपा रहा था
शुक्र भी अपनी महिमा का
वर्णन गा रहा था
शनि राहु केतु से कोई गम्भीर
विषय पर बतिया रहा था
पर पृथ्वी शांति से वरुण और
पवन को समझा रही थी
हे वरुण देव और पवन देव
तुम हमेशा अपना आशीष
रखना मुझ पर
तुमसे ही तो है पृथ्वी पर जीवन
अगर न होगा जल
अगर न होगी पवन
तो हो न पाएगा सृजन।
तब स्वप्न में ही समझ मुझे आया
कि पृथ्वी ही इस ब्रह्मांड की
अमूल्य धरोहर है
जो देती जीव जंतुओं को
अन्न जल और जीवन।
मैंने तुरन्त पृथ्वी के समक्ष
शीश झुकाया
और कहा माँ तुम हो
सबसे महान !
सारे ब्रह्मांड में तुम
जैसी विशेषताओं से युक्त
कौन है भला
तुम हो उर्वर !
तुम हो शीतल !
तुम हो जीवन।
तुम हो वरदान।
बिन तुम मानव का अस्तित्व नहीं
तुम हो सर्वगुणों की खान !