प्रकृति
प्रकृति
"हो गई धरा बंजर,अब और क्या चाहिए
हे मानव, तेरे लालच की कोई सीमा तो होनी चाहिए।
काट दिए पेड़, सुखा दिए जंगल
अब तुझे मेट्रो का आराम चाहिए,
ऐ मानव, शर्म कर
तेरी विलासिता की सीमा होनी चाहिए।
जब बूंद को तरसेगा तू , तो कहां से प्यास बुझाएगा
जब तेरा दम घुटेगा तो ,पेड़ ही काम आएगा।
मत कर इतना दूषित तू,तुझे भी पीड़ा होनी चाहिए
हे मानव, तेरे आलस्य की सीमा होनी चाहिए।
प्रकृति बड़ी प्यारी है ,क्यों इस उकसाता है
इसमें तुझको जीवन दिया,इसी पर सितम तू ढाता है।
मत कर प्रकृति से खिलवाड़, तिनके सा उड़ जाएगा
तुझे इसकी कीमत समझनी चाहिए
हर चीज की सीमा होनी चाहिए।
