कस्तूरी सी मैं
कस्तूरी सी मैं
कस्तूरी सी मैं
समा चुकी हूं तुझमें पिया
तू क्यों अंजान बना
ढूंढता है प्रेम किसी ओर में पिया
कस्तूरी सी मैं
महका रही तेरा आंगन पिया
क्यों भटक रहा तू
प्रेम को पाने को पिया
कस्तूरी सी मैं
हवा में गुम हो जाऊंगी पिया
तेरे पास ही हूं मैं
तेरे प्यार को तरसती कस्तूरी सी मैं पिया।।

