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प्रकृति देवी

प्रकृति देवी

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यूं ना अश्रु बहाओ

मन में धीर धरो,

जा रहा हूं हे प्रकृति देवी

हंसकर मुझे तुम विदा करो।


ये पहाड़ों की ऊंची चोटियां

नीचे गहरी इनके घाटियां

होता निश्छल स्पंदन सा

दिखाई देती अश्रुधारा,

माता इन्हें तुम रोको।

जा रहा हूं ऐसे ना टोको।


जा रहा हूं हे प्रकृति देवी

हंसकर मुझे तुम विदा करो।


पेड़़ वृक्ष और पौधे सारे

लगते हैं आवास हमारे

पहुंचो रणधीर नदी किनारे

देंगे तुम्हें हम उपहार

अश्रु रूपी जल के धारे

जुदाई का गम हमें ना दो,


जा रहा हूं हे प्रकृति देवी

हंसकर मुझे तुम विदा करो।


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