प्रिय पूज्य शिक्षक
प्रिय पूज्य शिक्षक
अध्यापक अपने शिष्यों को शिक्षा के साथ साथ जो प्यार अपनापन देते थे आज वो कहीं भी दिखाई नहीं देता है ऐसा लगता है जैसे सब मशीन है या सब कुछ वित्तीय हो गया है पैसा कमाना ही मुख्य ध्येय हो गया है
शिक्षक ओर शिष्य में वो सम्बन्ध प्यार अपनापन , वो शिक्षक के प्रति आदर नहीं रहा है
मुझे याद है मेरे पिताजी का स्थानांतरण राजस्थान के एक जिले टोंक में हुआ. पिताजी ने मेरा प्रवेश वहां के उच्चतर विद्यालय में नवमी कक्षा में करवा दिया.
मेरे मुख्य विषय साइंस बायोलॉजी होने के कारण बायोलॉजी के साथ केमिस्ट्री ओर फिजिक्स भी थे.
यूँ तो हम सभी शिक्षकों का पूर्ण आदर सम्मान करते थे सभी का विशेष स्थान था लेकिन मेरे जीवन में मुझे आज भी अपने विशिष्ट शिक्षक केमिस्ट्री के श्री लीलाराम खत्री जी का अपनापन, स्नेह, शिक्षा देने का तरीका आज भी उनके प्रति आदर से भर देता है.
हमेशा कक्षा में विशेष ध्यान रखना, प्रायोगिक कक्षा में सब कुछ अच्छे से समझाना बताना, व्यक्तिश हर बात को देखना, पढ़ाई पर विशेष ध्यान देना,
पिताजी उच्च पद पर आसीन थे, उनका अपना एक रुतबा था जब उनके किसी अधीनस्थ ने मेरे शिक्षक महोदय को परीक्षा में ध्यान रखने की सिफारिश उनसे की तो वो बहुत नाराज हुए, उन्होंने कहा की लगता है तुम्हे मुझ पर ओर अपने पर विश्वास नहीं है, सिफारिश कराने की क्यों जरुरत पड़ी
मैंने उनके अपनेपन का साक्षात्कार kaया उनका यही कहना मेरे लिए मील का पत्थर साबित हुआ, उनका कहना अपने पर विश्वास रखना सबसे बड़ी बात जो मुझे जिंदगी भर याद रही उसी के कारण में अपने जीवन में एक सफल इंसान बन सका
पिताजी का स्थानांतरण जयपुर हो जाने से में पुनः उनसे नहीं मिल सका किन्तु आज भी में उनको याद करता हूँ उनका स्मरण होता है तो उनकी कही बातें उनका अपनापन प्यार याद आ जाता है
ऐसे शिक्षक कम ही मिलते हें जो हर शिष्य को व्यक्तिश ध्यान देते हें अपनापन देते हें प्यार देते हें
आज उनके चरण छूने का मन करता है लेकिन समय गुजर चूका है आज ये भी पता नहीं की वो कहाँ हें किस हाल में हें ईश्वर से यही प्रार्थना है की जहां भी हों स्वस्थ हो।