परिस्थिति
परिस्थिति
ये विचारों का कैसा पहिया चला
डूब रही है सभी की नैया
किसी को मिला है कमाई का जरिया
तो सरकारी नौकर दबा बैठा है रुपया
मध्यम से चल रही अर्थ व्यवस्था की गाड़ी
इससे गरीबों की चल रही है जिंदगानी
मॉर्डन, आधुनिकता की पड़ी ऐसी मार
संस्कृति सभ्यता का हो गया बेड़ा गर्ग
विकास, पश्चात संस्कृति का बैठे बैठे कर रहे परीक्षण
गांव,परिवार, वृद्ध हो रहे विलक्षण
विद्या का सागर अहंकार भर लाया है
शिक्षक का महत्व कोरोना धो ले गया है
फटी पेंट छोटे कपड़ो ने वृद्धि रोकी दिमाग की
आदर सम्मान एकता की बेसाखियां तोड़ दी देश की
इतनी स्वतंत्रता में जी रहे है ये ऐसे
देश,रिश्तों को भूल बैठे है केसे
आखरी लफ्ज़ कहता हूं
परिस्थिति का परीणाम देता हूं।
