दर्शन
दर्शन
आकांक्षाओ के गलियारे में घूम चुका हूं
लक्ष्य के चोराहा का पता नहीं
सीमाओं के दायरे में
मंज़िल कई दूर है
जिम्मेदारी , भार को पूरा करते करते
कंधे दोनो टूट गए
मांगो को पूरा करते करते
खुद कि जरूरत ओझल हुई
अपेक्षा कई है मगर
सपनो की हकीकत नहीं
करना बहुत कुछ है पर
बनने का जोर ज्यादा है
हकीकत दर्शाना कुछ चाहती
परिस्थिति पर काबू नहीं ।
