STORYMIRROR

Dakshal Kumar Vyas

Tragedy

4  

Dakshal Kumar Vyas

Tragedy

दर्शन

दर्शन

1 min
391

आकांक्षाओ के गलियारे में घूम चुका हूं

लक्ष्य के चोराहा का पता नहीं

सीमाओं के दायरे में 

मंज़िल कई दूर है 

जिम्मेदारी , भार को पूरा करते करते 

कंधे दोनो टूट गए

मांगो को पूरा करते करते 

खुद कि जरूरत ओझल हुई

अपेक्षा कई है मगर 

सपनो की हकीकत नहीं

करना बहुत कुछ है पर 

बनने का जोर ज्यादा है 

हकीकत दर्शाना कुछ चाहती 

परिस्थिति पर काबू नहीं ।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy