परिणाम सबको झेलना होता है
परिणाम सबको झेलना होता है
कृष्ण जब संधि प्रस्ताव लेकर आये,
तो उन्हें ज्ञात था
कि इस प्रस्ताव का विरोध होगा।
यह ज्ञान महज इसलिए नहीं था
कि वे भगवान थे !
बल्कि, व्यक्ति का व्यवहार
और उसके साथ खड़ा एक मूक समूह,
बता देता है - कि क्या होगा।
तो भरी सभा में
कृष्ण की राजनीति तय थी।
दुर्योधन की धृष्टता पर
उन्होंने दाँव पेंच नहीं खेले,
अपितु सारा सच सामने रख दिया ।
सभा तब भी चुप थी,
और दुर्योधन उनको
मूर्ख समझ रहा था !
समय की नज़ाकत देखते हुए,
कर्ण को रथ पर बिठाया,
सत्य से अवगत कराया,
फिर होनी के कदमों
के उद्देश्य को
सार्थक बनाया !
झूठ,
छल,
स्वार्थ,
विडम्बना,
प्रतिज्ञा,
शक्ति प्रयोग
हस्तिनापुर के दिग्गजों का था,
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जब मृत्यु अवश्यम्भावी हो गई,
तब कृष्ण को प्रश्नों के घेरे में डाल दिया !
कृष्ण ने जो भी साम दाम
दंड भेद अपनाया,
वह सत्य की ख़ातिर,
द्रौपदी के मान के लिए,
क्रूर घमंड के नाश के लिए
. . . इस राजनीति पर
पूजा करते हुए भी,
सबके सब सवाल उठाते हैं,
लेकिन जिन बुजुर्गों ने कारण दिया,
उनसे कोई सवाल नहीं।
युग कोई भी हो,
गलत चुप्पी
और साथ का हिसाब
किताब होता है,
आँख पर पट्टी बांध लेने से,
गांधारी बन जाने से,
दायित्वों की तिलांजलि देकर
कोई बेचारा नहीं होता,
सिर्फ अपराधी होता है,
और अपराध से निपटने के लिए,
स्वतः खेली जाती है
"खून की होली"
परिणाम सबको झेलना होता है !!!