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Mukesh Modi

Romance

4  

Mukesh Modi

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प्रीतम की प्रतीक्षा

प्रीतम की प्रतीक्षा

1 min
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मन का द्वार मैं देखूं हर पल प्रीतम कब आओगे

किया जो वादा मिलने का भूल तो नहीं जाओगे


शब्दों से मैं शान्त हुई मन किया संकल्पों से मौन

नजरें लगी द्वार पर आओ जाने वो घड़ी है कौन


स्वप्न सजे हैं जाने कितने तेरे मिलन की आस में

अवश्य होगा मिलन हमारा जियूँ इसी विश्वास में


विरहयुक्त मन की वीणा यदि सुन कहीं तुम पाते

देर ना करते प्रीतम इतनी उड़कर पास मेरे आते


निरन्तर चलती ये सांसे मेरी जाने कब रुक जाए

मेरा एक यही निवेदन कि मिलन तुमसे हो जाए


पलके बिछाए बैठी हूँ प्राणों के प्रीतम आ जाओ

मेरे कानों को अपने कदमों की पदचाप सुनाओ


जीवन मेरा नमक का ढ़ेला तुझमें ही घुल जाऊँ

तेरे प्यार में डूबकर मैं शहद सी मीठी बन जाऊँ

 

मेरी चेतना की रग रग में प्यारे प्रीतम समा जाना

उतर कभी ना पाए ऐसा संग का रंग लगा जाना।



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