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Mamta Singh Devaa

Inspirational

4  

Mamta Singh Devaa

Inspirational

परिभाषा गर्व की

परिभाषा गर्व की

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गर्व उस पर किया जाता है...


जो निज स्वार्थ से परे होकर निःस्वार्थ भाव से जीता है

अपना फटा छोड़ कर दूसरों का फटा सीता है,

गर्व उस पर किया जाता है...

जो उपरी आवरण से नहीं मन से साफ होता है

अपना दुख भूल कर सबको सुख देता है ,

गर्व उस पर किया जाता है...


जो शब्दों से भरमाता नहीं जुबां से सच बोलता है

कितना भी कष्ट मिले सच का साथ नहीं छोड़ता है ,

गर्व उस पर किया जाता है...

जो ज़रा भी असंतोषी नहीं होता धैर्य से संतोष रखता है

सामने वाले का सिंदूर देख कर अपना माथा नहीं फोड़ता है ,

गर्व उस पर किया जाता है...

जो कर्तव्यों से बच भागता नहीं उसको बखूबी निभाता है

कर्तव्य को कर्म मान कर पूजा उसकी करता है ,

गर्व उस पर किया जाता है...


जो नहीं कभी अमर्यादित होता हर समय मर्यादा में रहता है

विकट परिस्थिति में भी एक पल को वो मर्यादा नहीं खोता है ,

गर्व उस पर किया जाता है...

जो अत्याचारी ना होकर पूरी तरह सदाचारी होता है

कैसी भी परिस्थितियां आये वो टिका सदाचार पर रहता है ,

गर्व उस पर किया जाता है...


जो अवगुणों से पूर्ण नहीं गुणों से भरपूर होता है

अपने इन्हीं गुणों की खातिर सबका बेहद प्रिय होता है ।



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