प्रेम...
प्रेम...
प्रेम..क्या है यह प्रेम...
सृष्टि का सुंदर अनुभव.......
एक अनूठा सा नाता......
एक मनमोहक बंधन.....
और भी बहुत कुछ है ये....!!
एक अनछुआ स्पर्श मन को...
भिगोता आत्मा को छूने.....
वाला बिना किसी रिश्ते के....
दिल से दिल को.....
जोड़ने वाला मधुर संबंध....!!
पुरुष का पुरुषत्व नारी का...
नारीत्व बच्चे का बचपन....
इन सबको पूर्ण करता...
मानव को मानव से जोड़ता...
सचमुच अद्भुत है ये प्रेम....!!
न जाने क्यों अब ऐसा नहीं...
कहीं स्वार्थ सिद्धि तो कहीं...
शारीरिक आकर्षण धन का...
लालच तो कहीं कुछ पाने की....
लालसा अब कुछ ऐसा है प्रेम...!!
काश प्रेम की परिभाषा समझ....
सकें हम सभी और मन की....
गहराइयों से बिना किसी शर्त.....
या मतलब के कर सकें सच्चा प्रेम.....
और दें जीवन में उसे सही मायने....!!