प्रेम
प्रेम
जब लौट के आओगे तो देखना वो पौधा
आज पेड़ होकर दिखता है कैसा ?
जिस पौधे को हम दोनों ने लगाए थे
वह दिखता है बिल्कुल हृदय के जैसा।
बचपन से जो पढ़ाए थे हमने उसको
पवित्र निष्छल प्रेम की भाषा
आदर्श शिष्य सम उसने हमारी
पढ़ लिया है मन की भाषा।
हर राही जो गुजरते देखे
आश्चर्यचकित हो जाते हैैं।
इस हृदय वृक्ष की जन्म रहस्य
कथा समझ नहीं पाते हैं।
रोज रोज फिरता हूं मैं
उन राहों और गलियारों में
जहां हमारी मुलाकातें
होती थीं इशारों इशारों में।
रोज सुबहशाम को आता हूं मैं
इसी पावन तरुवर के नीचे।
विरह में तुम्हारी मधुर स्मृतियां
यहां मेरे सूखे मन को सिंचे।
मैं सिंचता हूं इसको प्रतिदिन
बहाकर अश्रु और पानी।
हमारे प्रेम की यही निशानी
लोगों को कहेगा हमारी कहानी।
कैसे ये पेड़ भी समझते हैं
स्नेह और प्रेम की भाषा
सारे जीवजगत से प्रेम और
अहिंसा की इसने जगाई है आशा।
बहुत हुआ इंतज़ार प्रियतमा
कब लौटोगे जरा बताना
मुझको और इस दुलारे को भी
कष्ट हो रहे हैं वक्त बिताना।
प्रभु से प्रार्थना करूं मैं
जुदाई जल्दी हो जाए शेष
तन्हाई बहुत जलाती है भीतर
भर भर के कोह और क्लेश।
हृदय की भावनाओं में बहता
प्रेम तो पवित्र गंगा है।
प्रकृति के प्रत्येक सृष्टि को
प्रभु ने प्रेम से रंगा है।
फिर वृक्ष तो धरोहर है जग का
वृक्ष प्रेम से चुके
तो समझो जीवन व्यर्थ है
तुम प्रभु प्रेम से चुके।
