प्रेम
प्रेम
प्रेम मात्र एक शब्द नहीं
जो ढल जाए परिभाषा में
कितने ही रंग भर देता है
छोटी सी अभिलाषा में
स्वाद, वर्ण, स्पर्श, गंध
तो इंद्रिय के स्पंदन हैं
अद्भुत सबसे बढ़कर तो
मन का पावन आलोड़न है
कितनों ने ही बूझा इसको
फिर भी रहा अबूझा है
कालखंड से बद्ध नहीं
यह तो इतिहास समूचा है
नैनों से यह नैनों का
इक शब्दहीन संबोधन है
जीवन का अध्याय नहीं
यह तो पूरा ही दर्शन है!

