प्रेम
प्रेम
प्रेम,इतना विराट है
कि जो इसमे खो गया,
जीने का अंदाज सीख जाता है,
और जो नही समझा
वह मात्र शरीर तक
ही सीमित रह जाता है,
यारों ,शरीर नही,
यह स्पर्श है,
आलिंगन है,
एक आत्मा का
दूजी आत्मा से,
यह खो जाने,
डूब जाने जैसा है,
बस उसी प्रियतम में,
जो अनंत है,
असीम है,
जो स्रोत है हमारा,
बस जिससे आये थे,
वहीं जाना है,
जी कर यह अद्भत प्रेम,
बस पुलकित हो जाता है,
रोम रोम,
न रहता फिर कुछ शेष,
रहता तो बस प्रेम ही प्रेम।।

