प्रेम
प्रेम
मुझे प्रेम चाहिए सिर्फ मुझे प्रेम
एक पुरुष से प्रेम चाहिए सिर्फ प्रेम
वह पति होना जरूरी नहीं
और ना ही वह प्रेमी हो
ना ही कोई खरीददार हो
बस स्त्री हूं ना तो एक पुरुष का
प्रेम चाहिए
जो मेरी आंखों में देखे
नहीं मेरे अंतःकरण को देखे
जो मेरे रूह से होकर जिस्म तक जाएं
जो मेरे बोलने का इंतजार ना करें
मेरे मन को जो पढ़ ले
मेरी हंसी के पीछे उस दर्द को समझ ले
अपने अहंकार से इतर मेरे समर्पण को कद्र करें ।
नहीं चाहिए मुझे श्रृंगार की सारी वस्तुएं
एक चुंबन से मैं हो जाती हूं सिंगार से भरपूर ।
नहीं चाहिए मुझे तुम्हारे मुख से अपनी सुंदरता की प्रशंसा सुनना ।
बस एक बार सिलवटो को सहेज कर जब विदा करूँ
मुड़कर मेरे ललाट पर एक चुंबन जड़ देना
ज़माने भर के सामने नहीं चाहिए तुम्हारा मुझे सम्मान देने का रिवाज
अकेले में मिलो तो मेरे अस्तित्व को परखना मान देना
उसे इज्जत देना नजरों से ही सही
बीत जाता है हर वह मंजर पुराना लेकिन तुम मुझे पहले सा की प्यार देना ।
जब जब उम्र बीतने लगे तब तक तुम मेरे हृदय से और ज्यादा जुड़ जाना
शब्दों के मिठास से मुझे तरोताजा करना
मुझे लगेगा मैं अभी भी नवयौवना हूँ ।
जब ना रहूं बस तन्हाइयों में मुझे याद करना।
ढेर सारा फिर से प्रेम करना ताकि
अगले जन्म में तुम जैसा पुरुष मिले जो सिर्फ प्यार की परिभाषा समझता हो
और समर्पण होती रहूंगी बार-बार निरंतर तुम जैसे पुरुष के पास हर बार निरंतर लगातार।