प्रेम रंग की चुनरी
प्रेम रंग की चुनरी
नारी के श्रृंगार संग, चुनरी सोहे खूब।
लज्जा है, सम्मान है, परम्परा की दूब।।
रहता चुनरी में सदा, शील निज आन।
चुनरी में बसे सतत, हृदय के अरमान।।
गरिमा से निहित चुनरी, मर्यादा का रूप।
जिससे मिलती इसको इक स्नेहिल धूप।।
चुनरी तो वरदान है, चुनरी तो अभिमान।
चुनरी नारी की शान है चुनरी इक मान।
चुनरी में नारी के हर एक सजे यूँ रूप।
चुनरी में देवत्व है सूरज सरीखा स्वरूप।।
चुनरी दुर्बल है नहीं, नहीं चुनरी बलहीन।
चुनरी कमतर नहीं और ना कभी है दीन।।

