प्रेम पत्र
प्रेम पत्र
वह भी क्या ज़माना था
प्रेम को सिर्फ़ पत्रों से जताना था
ना मिलना था ना घुमने जाना था
सिर्फ़ अपना हाल पत्रों पर बताना था
फिर भी प्यार कितना सुहाना था
वह भी क्या ज़माना था ।।
पत्र की राह मे कई राते गँवाना था
पत्र पढ़ कर भी ख़ुशी छुपाना था
कोइ देख ना ले ऐसे मिलने बुलाना था
मिलकर भी हर गम छुपाना था
सिर्फ़ हँसता हुआ चेहरा दिखाना था
वह भी क्या ज़माना था ।।
प्यार मे न उपहार का लालच था
तन से न वासना का ताल्लुक़ था
सिर्फ़ दिल से ही प्यार निभाना था
एक को ही दिल से चाहना था
उसी का नाम ज़िंदगी भर गाना था
वह भी क्या ज़माना था।।