प्रेम की प्रतिमूर्ति
प्रेम की प्रतिमूर्ति
जिसे देख कुदरत भी शर्माए ,
वैसी मनोहर प्रकृति हो तुम।
मेरी सुकून की साक्षात् प्रतिमूर्ति हो तुम ,
जिसे शब्दों में बयां न किया जा सके वैसी खूबसूरती हो तुम ,
सिर्फ रंग- रूप से ही नहीं रूह से भी कुदरती हो तुम।
मेरे कलम से रोज गढ़ी जानेवाली कलाकारी हो तुम ,
मेरे अल्फ़ाजों के रंगो से बनी अविस्मरणीय चित्रकारी हो तुम।
मेरे दिल की अफ़साना भी तुम ,
जीने का एकमात्र जरिया ,
साथ मिलकर खुद को खूबसूरती के रंग में रंग-के दूसरे के
अधरों पर भी मुस्कान लाने वाली बेहतरीन नज़राना भी तुम।
मेरे दिल में छिपी शराफ़त भरी शरारती भी तुम।

