प्रेम के रुप अनेक
प्रेम के रुप अनेक
जितने तारे हैं नील गगन में
उतनी भावनाएं छुपी हैं मन में
कभी इक मंद पड़ जाती है
कभी दूजी चमक जाती है
इन भावनाओं के पूंज में
छिपी है रोशनी जीवन की
प्रेम शायद उसे कहते हैं
जीवन में रिश्ते इससे महकते हैं
मां का वात्सल्य बच्चे पर अगाध
दोस्त की दोस्ती का प्यार ही है नाम
सजनी का प्रेम है बड़ा अटूट
बांध दे साजन को जन्मों में यूं
प्रेम का पराकाष्ठा का भक्ति है नाम
मीरा जिसकी दिवानी है वो है घनश्याम।
प्रेम के रूप अनेक प्रेम के अलग नाम
बिन प्रेम के चल न पाये ये संसार।