प्रेम के कितने रूप
प्रेम के कितने रूप
प्रेम के कितने हैं रूप
सब अपने में हैं खूब
मां का प्रेम कितना है निश्चल
दे जीवन जीने का संबल
पिता का प्रेम है बड़ा अनोखा
बाहर से कठोर भीतर है कोमल कोना
शिष्य और गुरु का रिश्ता
है अनुशासित प्रेम पर ही टिकता
सजनी ने किया जो प्रेम
स्वीकार किया साजन को सप्रेम
इन सबमें सबसे अनूठा है इक सैनिक का प्रेम
निस्वार्थ भाव से देश की खातिर जो मिट्टी को बनाता सेज ।