दान
दान
दान देने की परंपरा है भारत की निराली
अन्न दान, रक्त दान की है लंबी पांति
अवयव दान या देहदान इनमें सर्वश्रेष्ठ
सबसे पुण्य का काम है कर सकता प्रत्येक
ईश्वर की अनमोल देन है यह हमारी काया
कितनी बारिकी से उसने है हमें बनाया
मिला है यह स्वस्थ तन उसकी अपार कृपा है
फिर किस बात का अहं हम करें यह कृत्य बुरा है
जीवन में जाने के बाद भी अगर जिंदा रहना है
अंगदान के माध्यम से यह पूर्ण हो सकता है
नेत्रदान कर किसी अंधेरे जीवन में उजियारा ला सकते हैं
निराश हो चुकी आंखो की चमक बन सकते हैं
स्पर्श से जो सब महसूस करा करते थे
नज़र का रंग उनकी आंखों में भर सकते हैं
अंग दान के महत्त्व को समझ जीवन सार्थक कर सकते हैं
अपना जीवन चलो क्यों न किसी के नाम कर जाएं
किसी उदास होंठों की मुस्कान ही बन जाएं
देखो कभी आंसू उस मां के जो जो अस्पताल में रोती हो
जाती हुई सांसे अपने बच्चे की गिनती हो
ऐसे में जो तुम अंगदान देकर उसे बचा लो
पैसों से भी अनमोल आशीष उससे पा लो
ऐसा पुण्य जीवन में किसी दान से न मिल सकता है
मृत्यु को भी वरदान बना दे ये अंगदान से हो सकता है
पर अंगदान को जो व्यापार हैं बना रहे
ईश्वर के अनमोल उपहार का अपमान हैं वे कर रहे
दिया उस खुदा ने जो हमें ये तन उसकी अमानत है
सौदा इन अवयवों का करते जो उन पर लानत है
बड़ा पाक काम यह तो इसमें कोई स्वार्थ न हो
देहदान कर करें नेक काम, हम बनें नेक इंसान वो
जीवन भर ईश स्तुति कर वरदान की जो ये इच्छा की
मौत भी वरदान हो सकती है यह कभी सोचा क्यों नहीं
चलो मृत्यु को ही इक उत्सव बना लो
बुझते दीपक की फिर इक नई लौ जगा दो।