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Gagandeep Singh Bharara

Abstract

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Gagandeep Singh Bharara

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मसले इंसान

मसले इंसान

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मसले इंसान को पहचानिए,

जो है और जो है नहीं, उसको जानिए,


इल्म के हकूक से भरा हुआ,

मगर, सलाहियत से बेपरवाह,


तकरीर मज़ारे ए इमाम की,

और कर्म फकीरों की इस्त्री किए कपड़ों की तरह,


जनुनें सिकों की खनखनाहट से शोख है ये,

मगर, असल ज़िन्दगी से कौसों दूर,

है सोच इसकी,


रफ्तार की खलबलाहट में,

नज़रे रूहानियत से दूर, है ये,

इसका अर्थ ही व्यर्थ है,

इसे मालूम नहीं ये,


इसका असल ही खोट,

यह मालूम नहीं इसे।।


मसले इंसान को पहचानिए,

जो है और जो है नहीं, उसको जानिए।


हकूक - सही ; सलाहियत - सलाह

रूहानियत - खुदा के होने का अहसास।


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