मैं और मेरा जन्मस्थल
मैं और मेरा जन्मस्थल
आ गई याद आज फिर उन्हीं वादियों की,
खो गई आज फिर उन्हीं फिज़ाओं में कहीं।
वहीं जहाँ पर बीता बचपन।
वहीं जाने के लिए आज फिर आई अड़चन।
वक्त के इस अनिश्चित मोड़ पर,
खो गए हम भी जिम्मेदारी ओढ़ कर।
देखा जब भी नीला गगन,
याद आ गए सब सपने, हम हो गए मग्न।
सब कुछ बदला बदला लगता है कभी,
पर प्रकृति को देखकर लगता है, हम हैं वहीं अभी।
देखते थे बचपन में जो ऊँचे पहाड़,
लगता था देखकर उन्हें, बने हम भी ऊँचे और महान।
मन्द मन्द हवा जो छूती थी इस दिल को,
बना दिया उसने मोम-सा इस दिल को।
आज फिर तरस रहें हैं नयन,
देखने को अपना जन्मस्थल, पर रखना पड़ रहा है संयम।
बीते वक्त में जा पाते हम काश,
सिमेटकर उस वक्त को ले आते साथ।
देखते थे बचपन में जब सूरज को,
लगे थे सोचने, करेंगे रौशन हम भी जग को।
जन्मस्थल से ही उदय हुए सब स्वप्न,
न होंगे जो कभी अस्त, समेटे हुए हैं नित नियम, होकर भी व्यस्त।
हाँ ! प्यार है, जन्मस्थल से अपनी मुझे,
क्योंकि जो आज मैं हूँ, है वो वहाँ की देन मुझे।