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jigyasa Dhingra

Romance

4  

jigyasa Dhingra

Romance

*वो पागल सी लड़की*

*वो पागल सी लड़की*

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छोटा सा सपना, गहरी सी आंखें

मासूम सी बातें, पागल सी लड़की।

कहीं उसके सपनों की लड़ी खो गई,

वो पागल सी लड़की बड़ी हो गई।


आंगन की देहरी, सौ रंग के सपने,

अनछुए से अनदेखे इक दिल के कोने।

जो सबको खिलाकर भूखी भी सो गई,

वो पागल सी लड़की बड़ी हो गई।

 

दिल में बसती थी, एक रंगीन बगिया,

उसमें बोती थी, अपनों की खुशियां।

लो सूखे क्या पौधे ! बस रो गई !

वो पागल सी लड़की बड़ी हो गई।


टूटे जो वादे, रूठे जो अपने

गिन भी ना पाओ, झूठे थे इतने 

बस तब से मुश्किल खड़ी हो गई।

वो पागल सी लड़की बड़ी हो गई।


बस एक भगवान थे उसके हमराज,

करती थी उनसे राज की हर बात।

 वक्त से लड़ने को  खड़ी हो गई,

वो पागल सी लड़की, बड़ी हो गई।


सपने जलाकर बन गई वो दीपक,

रह गई अकेली, ना कोई आहट।

जाने कहां वो फुलझड़ी खो गई।

उफ वो पागल सी लड़की बड़ी हो गई।


वो शरारत वो बातें कहीं खो गई

वो पागल सी लड़की बड़ी हो गई।


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